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Read book online «तलाश by अभिषेक दलवी (essential reading txt) 📕».   Author   -   अभिषेक दलवी



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भी नही था। लेकिन उदय इतनी मुश्किल से बनी हुई अपनी पहचान को खोना नही चाहता था।

उदयने इस मुश्किल से निकलने के लिए !एक खतरनाक तरकीब सूझी उसने  मदनलाल की सिंडिकेट को ही तोड़ने का प्लँन बनाया। उसने हर जगह से मदनलाल के बारे मे जानकारी इकठ्ठा करना शुरू कर दिया तब उसे पता चला की टेक्स्टटाइल ट्रेडिंग और टेक्स्टटाइल इंडस्ट्री मे मदनलाल का पहले कोई नाम नही था टेक्स्टटाइल का सारा बिजनेस उनके बड़े भाई किसनलाल छेड़ा का था। जो की विरासत मे इन्हे मिला था इतना ही नही इस सिंडिकेट के पूर्व चेअरमन किसनलाल छेड़ा ही थे इसी वजह से मदनलाल चेअरमन बना था। किसनलाल और मदनलाल दोनो भाई होने के बावजूद उनमें काफी फर्क था। लोगों के कहने के मुताबिक किसनलाल काफी समझदार , शांत और दयालु थे और वही मदनलाल घमंडी और गुस्सेवाला शख्स था यही कारण था की उसके सिंडिकेट के कई लोग उससे नाराज थे और जो वफादार थे उनमें से जादातर उनके नही बल्कि उनके बड़े भाई के कारण मदनलाल से वफादारी   निभा रहे थे।

उदयने इसी बात का फायदा उठाया उनसे नाराज रहे ट्रेडर्स  को एक एक करके अपनी तरफ खींचकर अपना चालीस प्रतिशत माल उनको मुफ्त मे बेच दिया। मुफ्त मे मिले हुए माल को वो ना नही कह पाये। जैसे ही वो विदेशी कपड़ा मार्केट मे आया मार्केट मे हंगामा मच गया। क्योंकि ये वो वक्त था जब जादातर मिल्स बंद हो चुके थे और बाकी बंद के होने की कगार पर थे  इस वजह से मार्केट मे जो कपड़ा आता था वो गुजरात से आता था और वो काफी मेहंगा भी रहता था। उसके हिसाब से ये काफी सस्ता और टिकाऊ साबित हुआ। ये देखकर बाकी ट्रेडर्स को  भी मदनलाल के प्रति वफादारी से  मुनाफा अच्छा है ये बात समझ मे आ गई। उदय का वो यूनिट अच्छे से चल रहा था। एक दिन वो युरोपिअन कंपनी जिसका वो यूनिट था वो एक अमेरिकन कंपनी ने खरीद ली ।वो कंपनी बस कूछ गिनेचुने देशों मे बिजनेस करना चाहती थी।  उस कंपनी ने हिंदुस्तान मे चल रही ये फॅक्टरी बंद करके उसकी मशीनरी बेचने का फैसला लिया। इस फैसले से उदय दुखी होने के बजाय  खुश हुआ। उसके पास काफी ऑर्डर थे , मजदूर भी थे।  ये फॅक्टरी कोई  और खरीदे उससे पहले उसने खरीदने का फैसला कर लिया। उसका मार्केट मे अब नाम बन चुका था उसको लगा इस वजह से उसे कर्जा मिलने मे दिक्कत नही होगी। मगर उसकी ये सोच गलत थी। उसे आठ से दस करोड़ का कर्जा चाहिए था भले ही उसका मार्केट मे नाम था लेकिन फीलहाल मुंबई चल रही मिल के हालातों को देखते हुए कोई भी उसे कर्ज़ा देने की हिम्मत नही कर पा रहा था। उसी वक्त उदय को याद आया अजित कुलकर्णी ।

अजित और उदय पूना के एक ही कॉलेज मे दो साल साथ साथ थे। अजित उस वक्त  प्रभाकर देशमुख का सिर्फ भांजाही था उनका दामाद नही बना था। उदय को सिर्फ वही कर्जा दिला सकता था। उसका रियल इस्टेट का बिजनेस था लेकिन वो सिर्फ दिखावे के लिए। अजित कुलकर्णी की कई कन्स्ट्रक्शन कंपनीज , हॉटेल्स , और फायनान्स कंपनीज मे पार्टनरशिप थी। असल मे प्रभाकर देशमुख के पैसों को जगह जगह मे इन्व्हेस्ट करने का काम वो करता था। सिर्फ रिश्ता से ही नही बल्कि उसका हुनर देखकर प्रभाकर देशमुखने ये जिम्मेदारी उस पर सौंपी थी। फायनान्स मार्केट मे उसकी पार्टनरशिप तो थी ही और उसके मामा की वजह से वहाँ काफी वजन भी था ।उसके एक इशारे पर कई फायनान्सर उदय लोन देने के लिए हो गए। इस बात का फायदा उठाते हुए उदयने दस नही बल्कि बीस करोड़ का लोन लिया और पहले से दुगनी बड़ी फॅक्टरी बनाई। उसके पास पहले से जो ऑर्डर थे उनको पूरा करने के साथ साथ वो अपना कपड़ा महाराष्ट्रा के बाहर भी भेजने लगा। गुजरात मे कुछ कंपनीया थी जो वैसा विलायती कपड़ा बनाती थी लेकिन क्वालिटि के बारे मे उदयने उन्हे पीछे छोड़ दिया। उदय का मार्केट मे अच्छा नाम बन गया ।इस तरह मुंबई एक गली मे रहनेवाला लड़का अपने हौसले से सिर्फ आठ सालों मे मजदूर से मालिक बन गया उसके हैसियत का इंसान जो सोच नही सकता वो उसने कर के दिखाया।

उदय का ये कामयाब सफर शायद नियती को ही मंजूर नही था उसके जिंदगी मे एक बहुत बड़ा मोड़ आया। जो कमाया था वो सबकुछ मिट्टी मे मिल गया।

दस दिन पहले रात को अचानक मिल मे आग लग गई। आग इतनी तेज थी की मिल का आधे से जादा हिस्सा जल कर खाक हो गया पाँच मजदूर दो वॉचमन भी आग मे मारे गये किसीने उदय के खिलाफ पुलिस मे रिपोर्ट लिखवायी। उदय के नाम का वॉरंट निकल गया। जैसे ही ये बात अजित को पता चली उसने उदय को मुंबई छोड़कर उसके मामा यानी प्रभाकर देशमुख के फार्महाउस पर जाने को कहा और उदय इधर आ गया। आज दस दिन हो चुके थे उदय इधर ही था अजितने उसे मुंबई आने से सख्त मना कर दिया था। यही सोचते सोचते उसने हाथ मे रही सिगरेट ओंठों से लगाकर एक जोर का कश मारा उसके मुँह से निकलता हुआ धुआँ हवा मे घुल गया। उसके पड़ोस मे चक्कर लगाता हुआ शख्स उसके पास आया उसके हाथ से सिगरेट छीन कर जमीन पर फेंकी और अपने पैरों तले बूझा दी।

" बस उदय बस...कब से देख रहा हूँ ये तुम्हारा क्या चालू है नशा किसी भी मुश्किल का हल नही होता " उसने गुस्से भरी आवाज मे कहाँ।

" तो फिर क्या हल है मामा आप ही बताओ...मेरी मिल उधर जल कर राख हो गई सारे मजदूर रास्ते पर आ गये और मै यहाँ छिपकर बैठा हूँ  " उदयने के स्वर मे उदासी साफ झलक रही थी ।

" निराश मत हो उदय सबकुछ ठीक हो जाएगा हम कोशिश कर रहे है ना " मामाने उसे समझाते हुए कहाँ ।

" इस मुश्किल से कैसे निकलू समझ मे नही आ रहा " 

" कुछ ना कुछ रास्ता जरूर निकलेगा बस तूम हिम्मत मत हारना " उसका सिर पर हाथ फेरते कहाँ।

फार्महाउस के आगे के दरवाजे के पास  एक गाडी आकर रुकी। गाडी से अजित उतरा अंदर आकर उदय के बारे मे नौकर से पूछा ।उस नौकर ने पिछले दरवाजे की तरफ़ इशारा किया।  अजित फार्महाउस का पिछला दरवाजा खोलकर स्विमिंगपुल की तरफ जाने लगा। उसको देखकर उदय और मामा उसके पास आ गये।

" क्या हुआ मुंबई मे क्या हाल है ?? " उदयने पूछा ।

" दुष्काळात तेरावा महीना " अजितने एक मुहावरा कहाँ।

" मतलब ?? " मामाने पूछा ।

" उदय की मुश्किलें और बढ़ गयी है सारे मजदूर अब इसके खिलाफ बोलने लगे है " 

" पर क्यों ? " उदयने पूछा ।

" उनके हिसाब से तूमने ही मिल मे आग लगवाई थी " अजितने कहाँ।

" व्हॉट ........डिसगस्टिंग मै ही अपने मिल मे आग लगवाउंगा क्या बेवकूफी है ये " उदयने गुस्से से कहाँ।

" तुम्हारा यूनियन लीडर बिक चुका है उदय  " 

" किसके हाथों " उदय के मामाने पूछा।

" ऐसा एक ही तो इंसान है मदनलाल छेडा " 

" वो क्यों हाथ धो के पीछे पड़ा है मेरे मैने क्या बिगाड़ा है उसका ? " उदयने परेशानी से पूछा।

" तुमने क्या बिगाड़ा है.....उसकी सिंडिकेट तोड़ दी उसके ट्रेडर को अपनी तरफ किया और तो और उसकी बेटी को भी पटाया " अजितने कहाँ।

" अरे पर मैने ये सब उसे परेशान करने के लिए नही किया था " 

" उदय तू उसे अच्छी तरह से जानता है अपने दोस्तों को दुश्मन बनानेवाला इंसान है वो।  तूझे इतनी आसानी से नही छोड़ेगा " 

" मदनलाल....मदनलाल...." गुस्से मे कहते उदय चेअर पर आकर बैठ गया।

" तेरे ऊपर जो पुलिस केस लगी है उसमे भी उसीका हाथ है इसलिए तूझे उस केस से बाहर निकालना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है और तो और मामा भी यहाँ नही है उनको आने मे दस बारा दिन लगेंगे " अजितने हताश होकर कह दिया।

" एक और प्रॉब्लेम है " कूछ पल बाद याद करते अजितने कहाँ।

" और क्या ? " उदयने परेशानी से पूछा।

" फायनान्सर्सस  को तेरी हालत का पता चल गया है वो पैसों के बारे मे पूछ रहे थे ब्याज के साथ रकम अब पच्चीस करोड़ से आगे जा चुकी है " 

" मूझे उस बात की फिक्र नही है। इन्शोरन्स के पैसे से मै फिर फॅक्टरी का बना सकता हूँ। मेरे पास अब भी ऑर्डर्स है बाद मे उनके पैसे भी चुका दूँगा लेकिन अब क्या करू ?? " 

" महाराष्ट्रा के बाहर चला जा " अजितने सुझाव बताया।

" क्या.....? " 

" हाँ मदनलाल के आदमी तुम्हे ढूँढ़ रहे है ताकि पुलिस को तेरी ख़बर दे सके " अजितने कहाँ।

" नही नही मै बिलकुल नही भागुंगा मै यही रहुँगा " 

" ज़िद मत कर उदय " अजितने कहाँ।

" अजित ठीक कह रहा है उदय... जेल के अंदर जाकर तू कुछ नही कर सकता तुम्हे बाहर ही रहना होगा " मामाने कहाँ 

" लेकिन मै जाऊँगा कहाँ महाराष्ट्रा के बाहर मै किसी को जानता भी नही " 

" लेकिन मै जानता हूँ। तूम मेरे साथ चलो सारा इंतजाम हो जाएगा " उदय के मामाने कहाँ।

" ऐसे कितने दिन तक मूझे छुप कर रहना होगा " उसने अजित से सवाल किया ।

" इन्शोरन्स के पैसे मिलने तक तब तक मै तुम्हारी पुलिस केस भी निपटा दूँगा।

" अजित तुम्हारी गाडी हमे मिल सकती है हम अभी निकलते है " मामाने अजित से पूछा।

" जी बिल्कुल " कहकर अजितने अपनी गाडी की चावी उनके हाथ मे थमा दी। अपना सामान गाडी मे डालकर दोनो गाडी मे बैठ गये। वो सफेद बॅगस्टर उधर से निकल पड़ी।

रात के एक बज चुके थे ।गाडी रास्ते पर आराम से चल रही थी। ड्रायव्हिंग सीट पर मामा बैठे थे। उदय उनके बगलवाली सीट पर बैठा था खुली खिडकी से ठंडी हवा अंदर आ रही थी। काफी देर बाद कोई दूसरी गाडी पास से गुज़र रही थी। रास्ते के दोनो तरफ अंधेरा और उसमे घनी झाडीया दिख रही थी।

" हम सीधे राजस्थान चले।  या फिर मुंबई से होकर मुंबई मे कुछ काम है ? " मामाने उदय से पूछा ।

" मुंबई से होकर चलते है " 

" क्यों ?? " 

" रेश्मा से मिलना है " 

" ये वक्त उससे मिलने का नही है " 

" प्लीज मामा उससे मिलना ज़रूरी है मै जादा वक्त नही लूँगा " 

" ठीक है " कहकर मामाने गाडी मुंबई कि तरफ मोड़ दी।

 रेश्मा उदय कि मंगेतर थी। उनकी लव्हस्टोरी भी उदय के जिंदगी कि तरह थी। खुशहाल तो थी पर उसमे काफी मुश्किलें भी थी क्योंकि रेश्मा कोई और नही बल्कि उदय के सबसे बड़े दुश्मन मदनलाल छेडा की बेटी थी उन की पहली मुलाकात  मदनलाल की वजह से ही हुई थी।

मदनलालने अपने ट्रेडर्स को उदय का माल लेने से मना कर दिया था। उदयने  रिश्वत देने मना करने की वजह से उसके अहंकार को ठेस पहुँची थी ये बात उदय भली भाँति जानता था उसकी माफी माँगने के लिए उदय तीन चार बार ऑफिस जा चुका था।  लेकिन ऑफिस मे रहकर भी मदनलाल उदय से नही मिला इसीलिए छुट्टी के दिन उदयने उसके बंगले पर जाकर उससे मिलने का फैसला किया।

शाम के पाँच बजे थे। बांद्रा जैसे आलीशान इलाके मे मदनलाल का बंगला था। उदय की गाडी उदय की गाडी मदनलाल छेड़ा के बंगले मे दाखिल हुई ।उसके साथ एक घनशाम नाम का मदनलाल का खास ट्रेडर था जिसके ज़रिए वो मदनलाल से मिलने आया था ।वो ट्रेडर गाडी से उतर गया ।

" मै लॉन मे जाकर मदनलाल सेठ का इंतजार करता हूँ आप गाडी पार्क करके उधर ही आ जाओ " कहकर वो लॉन की तरफ बढ़ गया।

उदय गाडी पार्क करके गाडी से बाहर निकला और लॉन की तरफ जाने के लिए मुड़ा तभी उसकी नजर ऊपरी मंजिल की बाल्कनी मे गई। वहाँ एक लड़की खड़ी थी। उम्र लगभग तेईस चौबीस साल की होगी , चाँद सा गोल चेहरा , गुलाब की पंखुडियों जैसे ओठ , दुध सी गोरी त्वचा , हँवा के साथ उड़ रही उसकी नाजुक  जुल्फें। उदय कूछ पल उसको देखता ही रह गया उस लड़की की नजर भी उदय पर पड़ी और वो अंदर चली गई। उदय भी मूडकर लॉन की तरफ बढ़ गया। कुछ आगे चला होगा तभी वो लड़की बंगले के दरवाजे से निकलकर उसके तरफ आते हुए नजर आयी ।

" एक्सस्कूज मी ...हे यू....." उसने उदय को आवाज लगाई ।

" जी...मै " उदयने पूछा।

" हाँ तुम....तुम शर्मा हो ना ?  " 

" जी हाँ " 

" ठीक है आओ मेरे साथ " कहकर वो

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