शायद यहीं है प्यार ....(sample) by अभिषेक दलवी (ereader for textbooks .txt) 📕
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- Author: अभिषेक दलवी
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शायद
यहीं है
प्यार ....
(SAMPLE)
मैं अब काले पत्थरों से बनी ठंडी जमीन पर बैठा हुआ था। सामने लोहे की सलियों से बना हुआ दरवाजा दिख रहा था। ऊपर पीला बल्ब लगा हुआ लैम्प लटक रहा था। उस बल्ब की रोशनी में दरवाजे के बाहर से जो भी मुझे देख रहा था,उसके आँखों में मुझे मेरे लिए गुस्सा , शर्म और थोड़ी बहुत सिंपत्ती दिखाई दे रही थी। उनके आँखों मेरे लिए सिर्फ वही दिख सकता था क्योंकी अब मैं मेरी पहचान बतानेवाले फुटबॉल ग्राउंडपर नहीं था , मुझे विरासत में मिलनेवाले पापा के ऑफिस में नहीं था और मेरे आलीशान बंगले में भी नहीं था। मैं अब जहां था, उस जगह से अच्छे लोगों का संबंध तो आता ही नहीं बल्कि बुरे लोग भी यहां आने से डरते है क्योंकी इस जगह को जेल कहते है।
मैं अभिमान, अभिमान देशमुख। एक मशहूर बिजनेसमैन का बेटा। पुने अपने सपने पूरे करने के लिए आया था। जिंदगी एक नए तरीके से ,अलग अंदाज से शुरू करने की मेरी ख्वाइश थी, पर मुझे क्या पता था यहां आकर मेरे साथ ऐसा कुछ होगा की मेरी जिंदगी , मेरा भविष्य पूरी तरह से बदल जाएगा। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, मेरा कॉलेज का वह पहला दिन।
उस दिन मैं सुबह जल्दी उठकर अपने रूम के सामनेवाली गैलरी में खड़ा था। बारिश होकर कुछ ही पल बीत गए थे। सामनेवाले पीपल के पत्तो पर जमा हुई बारिश की बूंदे टिप टिप बरस रही थी।मौसम में एक अलग ही ठंडक छा गई थी। आसमान काले बादलों से भरा हुआ था। आठ बज गए थे, फिर भी सूरज की किरणों का कोई नामोनिशान नही था।बादलों की वजह से थोड़ा बहुत अंधेरा छा गया था। ऐसा बारिश का मौसम देखते ही बचपन के दिन याद आते थे। बचपन में दो महीनों की छुट्टी के बाद एक सुबह माँ स्कूल के लिए जल्दी जगाती थी। फिर अंगड़ाइयाँ लेते हुए स्कूल जाने की तैयारी होती थी। नया नया रेनकोट पहनकर ऐसी ही बारिश में कीचड़ से खेलते हुए स्कूल आने का मजा ही कुछ अलग था। काफी दिनों बाद खुलने की वजह से बंद हवा से भरे हुए क्लासरूम , स्कूल के पीछेवाले तालाब से आनेवाली ठंडी हवा , नए किताबो से निकलनेवाली कागज की खुशबू, सब कुछ बहुत अच्छा लगता था। पर सच बताऊ तो इतने अच्छे मौसम में भी लंबी छुट्टी के बाद स्कूल जाना है यह सोचकर ही मैं थोड़ा बोर हो जाता था ।
उस दिन भी मैं सुबह जल्दी उठ गया था। बिल्कुल वैसी सुबह , वैसा मौसम था पर उस वक्त मैं बिल्कुल बोर नही हो रहा था। क्योंकी वह मेरे स्कूल का नहीं कॉलेज का पहला दिन था। मैं इंजिनियरिंग करने के लिए पूना आया था। जिंदगी में पहली बार घर से इतने दूर आया था। मैं अपने घर में सबका लाडला था। इसलिए जब मैं यहां आने के लिए तब माँने,
" इतने लाड़ प्यार से बड़ा हुआ है। घर से इतने दूर कैसे रहेगा ?" ऐसा पापा से कहकर मुझे रोकने की कोशिश की, पर पापाने,
" उसे जरा दुनिया समझने दो, कब तक उसे अपने आँचल में छिपाकर रखोगी ?"
कहकर माँ को चुप कर दिया । वह पापा की जिद से अच्छी तरह वाकिफ थी, इसलिए उसने आगे कुछ नही कहा। मैं यहां आने के लिए निकला तब माँ बहुत दुःखी थी पर मैं तो यहां आकर बहुत खुश था।
मैं यही सोचते हुए कॉलेज के पास पहुँच गया। गेट के बगलवाले स्टॉल के चाय की चश्मे की काँचपर जमी हुई भाप शर्ट्स से पोंछकर मैंने चश्मा नाक पर चढ़ा दिया। सामने मेरा कॉलेज दिख रहा था। मैं बड़े लोहे के गेट से अंदर आया। छह मंजिली कॉलेज की बिल्डिंग दूर तक फैली हुई थी। यहां इंजीनियरिंग के साथ डिग्री , बी एड और लॉ भी था। ग्रांउड में लड़के क्रिकेट और फुटबॉल खेल रहे थे । उन्हें देखकर मुझे मेरा भी फुटबॉल खेलने का मन कर रहा था। मैं अपने स्कूल में था तब अच्छा फुटबॉल प्लेयर था पर पापा के कहने पर मुझे फुटबॉल छोड़ना पड़ा था।उन लड़कों को देखकर मुझे वह दिन याद आ गए थे। पर फिलहाल वह यादें साइड में रखकर मैंने बिल्डिंग में एंट्री ले ली। सबसे पहले इतने बड़े बिल्डिंग में मुझे अपना क्लासरूम ढूंढना था क्योंकी पहला लेक्चर दस बजे शुरू होनेवाला था और मेरी घड़ी में अब दस बजकर बीस मिनट हुए थे। हर एक बोर्डपर लगाए हुए लिस्ट में मैं अपना नाम ढूंढते हुए आगे बढ़ रहा था। तब ही मेरे पीठपर किसीने थप्पी दी।
" फ्रेशर ?" पीछे से आवाज आई।
मैंने पीछे मुड़कर देखा। पीछे घुटनों पर फटी जीन्स , ब्लेड से काटकर डिझाइन बनाए हुए टीशर्ट , गले मे लॉकेट , कान में बाली , कलर लगाए बाल अगर शुद्ध हिंदी में कहा जाए तो मवाली दिखनेवाले चार लड़के खड़े थे। उसमे से एकने मुझसे सवाल पूछा था। मैंने हाँ कहते हुए सिर हिलाया ।
" नाम क्या है ?" दूसरे लड़केने पूछा ।
" अभिमान देशमुख।" मैंने कहा ।
" क्लास ढूंढ रहे हो ?" पहले लड़केने पूछा ।
" हाँ।" मैंने कहा।
" कौनसी स्ट्रीम ?"
" मेकॅनिकल "
" ओह्ह इंजीनियरिंग ?"
" येस "
" ए रॉकी, इसका नाम लिस्ट में चेक कर। देख कौनसी क्लास में है।"
" यह जी २७ में है।" तीसरे लड़केने बताया ।
" जी २७ में तो लेक्चर शुरू हो गया है। इस फ्लोर पर आखरी क्लास है, जल्दी जा।" उस लड़केने बताया। मगर यह बताते वक्त उसके होठोंपर मुझे एक कातिल मुस्कान दिखाई दी।
कुछ तो गड़बड़ है ऐसा मुझे शक हो रहा था पर देर हुई इसलिए ज्यादा ना सोचते हुए मैं आखरी क्लासरूम के पास दौड़ते हुए आ गया और झट से अंदर चला गया।
अंदर आकर मैंने देखा, एक लड़की आइने के सामने खड़े होकर लिपस्टिक लगा रही थी , एक लड़की वॉशबेसिन में मुँह धो रही थी , एक लेडीज सर्व्हेन्ट पोंछा लगा रही थी और तब ही एक लड़की मुझे देखकर चिल्लाई और उसने झट से सामनेवाले टॉयलेट में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। वह सब देखकर मुझे एक बात समझ मे आ गई कि उन लड़कों ने मुझे पूरी तरह उल्लू बनाया है। मैं अब क्लासरूम के बजाए गर्ल्सवॉशरूम में आ गया था और किसी अमीरों की पार्टी में कोई भिखारी भूख से मजबूर होकर आता है, उसके बाद वह अमीर लोग भिखारी को जिस नजर से देखते है। उस नजर से वह लड़कियां मुझे देख रही थी। वह मुझे कुछ कहे इससे पहले मैं बिजली की गती से उस रूम से बाहर आ गया।
" अंधे हो क्या ? दिखाई नही देता।" उस रूम से आवाजें आने लगी। शायद उस लेडी सर्व्हेन्ट की होगी।
सामने वह चार लड़के खड़े थे, जिन्होंने मुझे वहां भेजा था। वह मुझपर हँस रहे थे। वह देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ गया। उन लड़कों में से एक मेरे पास आया।
" सॉरी दोस्त .....बस मजाक किया। तुम्हारा फर्स्टफ्लोर पर थर्ड क्लासरूम है ।" उसने बताया।
मुझे उनपर गुस्सा आया था लेकिन उनसे झगड़ने के लिए मेरे पास वक्त नही था। मैं उनको इग्नोर करके फर्स्टफ्लोर के थर्ड क्लासरूम में आ गया। अंदर कोई भी टीचर मुझे नजर नही आ रहा था। शायद पहला दिन है इसलिए लेक्चर के लिए कोई प्रोफेसर नही आया होगा। क्लास के अंदर कुल मिलाकर बेंच के पाँच रो थे। दो लड़कियों के और तीन लड़कों के थे।लड़कियों के रो में हर एक बेंच पर लड़कियां बैठी थी। पर लड़को के रो में सब लड़के आदत के मुताबिक पहले दो बेंच छोड़कर तीसरे बेंच से बैठे थे। चौथे रो में पहले बेंचपर सिर्फ एक गोरा , घुंगराले बालोंवाला , गुब्बारे जैसे गालोंवाला , आँखोपर बड़ा सा चश्मा लगाया हुआ एक लड़का बैठा था। हर एक स्कूल , कॉलेज में ऐसा कमसे कम एक महान इंसान रहता है। जो भूकंप आने दो या फिर स्तुनामी कुछ भी हो जाए फिर भी लेक्चर अटेंड करेंगा और आकर पहले बेंचपर ही बैठेंगा, फिर सामनेवाला कोई बुड्ढा प्रोफेसर बोलते वक्त उसके मुँह से निकलेवाली अमृत की छींटे उसके बदन पर उड़ेगी तो भी उसे चलता है। सच कहूँ तो ज्युनियर कॉलेज के वक्त मैं भी ऐसा ही था। पर अब मैं वैसी सो कॉल्ड आइडियल लाइफ बिल्कुल जीना नही चाहता था। मैं थर्ड रो के फोर्थ बेंचपर आकर बैठ गया। मेरे पड़ोस में बैठे लड़केने मुझे देखकर एक स्माइल दी और फिर पीछे बैठे लड़को के साथ बात करने लगा। वह उन दोनों को कोई फॉर्म भरने में मदद कर रहा था। आगे के बेंच पर बैठा एक लड़का एफ.एम. पर गाने सुन रहा था। मैंने घड़ी में देखा, दस बजकर पच्चीस मिनिट हो चुके थे। प्रोफेसर अब तक आए नही थे। मैंने पूरे क्लास में नजर दौड़ाई। सब एकदूसरे के साथ बातें कर रहे थे , कुछ अपनी पहचान बता रहे थे , तो कुछ फ्रेंडशिप कर रहे थे। मेरे दाए तरफ लड़कियों का रो था। वहां लड़कियां ग्रुप बनाकर बैठी थी। उनके हँसने बोलने की आवाजे आ रही थी। मेरा ध्यान मेरे पड़ोसवाले बेंचपर बैठी लड़की पर गया। क्यों वह पता नही ? पर उसे देखते ही मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह लड़की बाकी लड़कियों से अलग है। पूरे क्लास में जितनी भी लड़कियां थी वह सब टाइमपास कर रही थी। पर मेरे पड़ोस के बेंचपर बैठी अकेली ऐसी लड़की थी जो कोई किताब पढ़ रही थी। मुझे पहले से ही मेकअप ब्यूटीज से ज्यादा ऐसी सीधी साधी , पढाई मे दिलचस्पी रखनेवाली लड़कियां बहुत पसंद थी। पर मेरी किस्मत ही खराब थी। मेरे कॉलेज में जो लड़कियां थी वह मुझसे ही नोट्स मांगती थी और जो पढ़ाई में दिलचस्पी रखनेवाली लड़कियां थी वह दिखने में इतनी अच्छी नही थी। पर अब मेरे बगल में जो लड़की बैठी थी वह बहुत खूबसूरत थी। मैंने अब तक उसका चेहरा देखा नही था पर उसकी खूबसूरती की जानकारी मेरा सिक्स्थसेंस मुझे दे रहा था। मैं उसके बाए तरफ बैठा था और उसी तरफ से उसकी जुल्फे उसके चेहरे पर आ रही थी , उन बालों में से दिखनेवाली उसकी गोरीगर्दन , गुलाबी सलवार कमीज , जमीन पर निकाली हुई गीली सैंडल से खेलनेवाले उसके नाजुक पाँव , छनकनेवाले कंगन पहने हुए मुलायम हथेलियां यह सब देखकर मुझे यह बात समझ मे आ गई थी की वह लड़की बहुत खूबसूरत होगी। मुझे कोई देख नही रहा इसका अंदाजा लेकर मैं फिर उसकी जुल्फों से उसका चेहरा देखने की कोशिश करने लगा। जिंदगी में पहली बार मैं किसी लड़की को इस तरह से देख रहा था। शायद उम्र के साथ बढ़नेवाला अॅट्रैक्शन होगा या फिर वह अब तक देखी हुई सबसे खूबसूरत लड़की होगी या फिर और कोई वजह होगी पर ऐसा लग रहा था बस उसे देखता रहूँ। उसका चेहरा देखने की मेरी यह तड़प शायद भगवान को भी पता चल गई होगी क्योंकी तब ही उस लड़कीने मेहंदी से सजी हुई अपनी नाजुक उंगलियो से चेहरे पर आए हुई अपनी जुल्फे धीरे से कान के पीछे सटा दी। मैं उसे ही देख रहा था। चाँद की तरह गोल चेहरा , झील सी साफ आँखे , मख्खन जैसे मुलायम गाल , गुलाब की तरह लाल होंठ मैं बस उसे देखे जा रहा था। हाथों में मौजूद बुक में उसने कुछ पढ़ा और वह मुस्कुराने लगी। उसके होंठो पर आई वह स्माईल देखकर मैंने उस बुक के राइटर का मन ही मन शुक्रिया अदा कर दिया। मैं उसेही देख रहा हूँ यह शायद उसे पता चल गया होगा उसने मेरी तरफ देखा। हमारी नजरे एक दूसरे से टकरा गई। मैंने झट से अपनी नजरे फेर ली और दूसरी तरफ देखने लगा। मेरे दिल की बढ़ी हुई धड़कने मुझे साफ साफ महसूस हो रही थी। मैंने फिर चोरी छुपे उसे देखने की कोशिश की, तब ही दरवाजे से एक अधेड़ उम्र की औरत अंदर आई। वह प्रोफेसर लग रही थी शायद पहला लेक्चर उन्ही का होगा ।
कॉलेज के पहले दिन जो जो होता है वह सब अब चालू था। हर कोई खड़ा होकर अपनी अपनी पहचान बता रहा था। पहले रो की सब लड़कियोंने अपनी इंट्रो बताई थी। अब दूसरे रो की लड़कियों की बारी थी। मुझे इस टाइमपास
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