शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕
आज भी कई प्रेम कहानियां पूरी होती है, पर कुछ हमेशा हमेशा के लिए अधूरी रह जाती है। ज्यादातर प्रेम कहानियां अधूरी रह जाती है, लड़का और लड़की के परिवारों के ना कहने की वजह से और इन परिवारों की ना कहने की वजह भी बड़ी दिलचस्प रहती है। कुछ परिवारवालों को लड़का दिखने में अच्छा चाहिए तो कुछ परिवारों को बहु कमानेवाली चाहिए। कुछ लोगों को लड़की अपनी कुल की चाहिए तो कुछ लोगों को लड़का पराए गोत्र का चाहिए। कुछ लोग बहु से दहेज माँगते है तो कुछ लोग दामाद को ही घरजमाई बनाना चाहते है। कभी लड़केवाले राजी होते पर लड़कीवालों की ना रहती है। कभी लड़कीवालों की हां रहती है तो लड़केवाले ना कह देते है और अगर दोनों परिवार शादी के लिए हां कर भी दे तो कुंडली मे दोष आ ही जाता है।
मेरे ख्याल से किसीसे बेपनाह मोहब्बत करने के बाद सिर्फ घरवालों की मर्जी के खातिर उससे रिश्ता तोड़ देना , उससे हमेशा के लिए दूर जाना , उसे भूल जाना इससे बड़ा दुःख इस दुनिया में हो ही नही सकता।
लेखक की यह कहानी भी ऐसे दो किरदारों से जुड़ी है, जिनके परिवार , शहर , रास्ते एक दुसरे से काफी अलग है। पर उनका प्यार , उम्मीदे और किस्मत उन्हें उनकी जिंदगी एक साथ जिने के लिए मुमकिन करा देते है। अब उनकी जिंदगी कुदरत का मेल है , किस्मत का खेल है या फिर उनके प्यार का फल है यह कहानी पढकर आप ही तय किजीए।
Read free book «शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕» - read online or download for free at americanlibrarybooks.com
- Author: अभिषेक दळवी
Read book online «शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕». Author - अभिषेक दळवी
शायद
यही है...
प्यार
अभिषेक दलवी
यह कहानी मेरी माँ को समर्पित
जिनकी वजह से किताबों के प्रति मेरी
रुचि बढ़ गई।
प्राकथन
यह मैंने लिखी हुई पहली प्रेम कहानी है। हमारे देश के इतिहास में कई प्रेम कहानियां हुई है, कुछने इतिहास बनाया है, तो कुछ इतिहास बनकर रह गई। आज भी प्यार करने का हक हर किसी को है, पर अपनी मर्जी से शादी करने का बिल्कुल भी नहीं।
आज भी कई प्रेम कहानियां पूरी होती है, पर कुछ हमेशा हमेशा के लिए अधूरी रह जाती है। ज्यादातर प्रेम कहानियां अधूरी रह जाती है, लड़का और लड़की के परिवारों के ना कहने की वजह से, इन परिवारों की ना कहने की वजह भी बड़ी दिलचस्प रहती है। कुछ परिवारवालों को लड़का दिखने में अच्छा चाहिए तो कुछ परिवारों को बहु कमानेवाली चाहिए। कुछ लोगों को लड़की अपनी कुल की चाहिए तो कुछ लोगों को लड़का पराए गोत्र का चाहिए। कुछ लोग बहु से दहेज माँगते है तो कुछ लोग दामाद को ही घरजमाई बनाना चाहते है। कभी लड़केवाले राजी होते पर लड़कीवालों की ना रहती है। कभी लड़कीवालों की हां रहती है तो लड़केवाले ना कह देते है और अगर दोनों परिवार शादी के लिए हां कर भी दे तो कुंडली मे दोष आ ही जाता है।
मेरे ख्याल से किसीसे बेपनाह मोहब्बत करने के बाद सिर्फ घरवालों की मर्जी के खातिर उससे रिश्ता तोड़ देना , उससे हमेशा के लिए दूर जाना , उसे भूल जाना इससे बड़ा दुःख इस दुनिया में हो ही नही सकता।
मेरी यह कहानी भी ऐसे दो किरदारों से जुड़ी है, जिनके परिवार , शहर , रास्ते एक दुसरे से काफी अलग है। पर उनका प्यार , उम्मीदे और किस्मत उन्हें उनकी जिंदगी एक साथ जिने के लिए मुमकिन करा देते है। अब उनकी जिंदगी कुदरत का मेल है , किस्मत का खेल है या फिर उनके प्यार का फल है यह आप तय किजीए।
जुलाई २००८
बारिश होकर कुछ ही पल बीत गए थे। सामनेवाले पीपल के पत्तो पर जमा हुई बारिश की बूंदे टिप टिप बरस रही थी। मौसम में एक अलग ही ठंडक छा गई थी। आसमान काले बादलों से भरा हुआ था। आठ बज गए थे, फिर भी सूरज की किरणों का कोई नामोनिशान नही था। बादलों की वजह से थोड़ा बहुत अंधेरा छा गया था। ऐसा बारिश का मौसम देखते ही मन के कोने में दबी हुई यादे अंडे से निकली हुई तितली की तरह मचलने लगती है। बचपन में दो महीनों की छुट्टी के बाद एक सुबह माँ स्कूल के लिए जल्दी जगाती थी। फिर अंगड़ाइयाँ लेते हुए स्कूल जाने की तैयारी होती थी। नया नया रेनकोट पहनकर ऐसी ही बारिश में कीचड़ से खेलते हुए स्कुल आने का मजा ही कुछ अलग था। काफी दिनों बाद खुलने की वजह से बंद हवा से भरे हुए क्लासरूम , स्कूल के पीछे वाले तालाब से आनेवाली ठंडी हवा , नए किताबो से निकलनेवाली कागज की खुशबू, सब कुछ बहुत अच्छा लगता था। पर सच बताऊ तो इतने अच्छे मौसम में भी लंबी छुट्टी के बाद स्कूल जाना है यह सोचकर मैं थोड़ा बोर हो जाता था ।
आज भी मैं सुबह जल्दी उठ गया था। बिल्कुल वैसी सुबह , वैसा मौसम था पर आज मैं बिल्कुल बोर नही हो रहा था ।क्योंकी आज मेरे स्कूल का नही कॉलेज का पहला दिन था।
मैं अभिमान ....अभिमान देशमुख। मैं नासिक से हूँ। फिलहाल इंजीनियरिंग करने पूना आया हूँ। अब आप सोच रहे होंगे मैं इंजीनियरिंग कर रहा हूँ, मतलब चार साल की डिग्री , फिर एक अच्छे कंपनी में प्लेसमेंट , पांच छह लाख का पॅकेज ऐसे कुछ मेरे सपने होंगे पर ऐसी गलतफहमी में बिल्कुल भी मत रहना क्योंकी जॉब वैगराह करने की मुझे बिल्कुल भी जरूरत नही है और रहा सवाल मेरी इंजीनियरिंग के एडमिशन का तो इसका पूरा क्रेडिट मेरे पूज्य पिताजी को देना होना। अपने बच्चे को इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलाते वक्त माँ बाप का नजरिया कुछ इस तरह से होता है की अगर अपने बच्चे को इलेक्ट्रॉनिक चीजों में खूबी है, तो उसे इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलाए। अगर बच्चा मशीन का पोस्टमॉर्टम कर रहा है तो मेकॅनिकल और कंप्यूटर के सामने वक्त बिता रहा है, तो कंप्यूटर इंजीनियरिंग में एडमिशन दिलाए। कुछ लोग तो बड़े गर्व से कहते है।
" हमारा मौंटी ना, दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठा रहता है । इसलिए हमने तय किया है कि इसे कंप्यूटर के लिए भेज दे ।"
अब इनका मौंटी दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठकर सच मे क्या क्या करता है ? यह भी एक सोचनेवाली बात है। मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग में होने की वजह कुछ और ही थी। मेरे पापा मतलब ' सूर्यकांत देशमुख ' यह नासिक के एक बड़े बिजनेसमैन। मेरे पिता का बिजनेस आगे बढ़ाने की मेरी ख्वाईश थी। नौकरी तो मुझे कभी करनी ही नही थी। मेरे पापा को भी मेरा यह फैसला मंजूर था। पर फिर भी सिर्फ ग्रॅज्यूएशन करके पढ़ाई पूरी करने के बजाए उन्होंने मुझे इंजीनियरिंग में भेज दिया। इस सब की सिर्फ एक वजह थी। मेरे पापा को इंजीनियरिंग करने की ख्वाईश थी जो उनके पिताने कभी पूरी नही होने दी इसलिए उनकी ख्वाईश पूरी करने की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर सौंप दी । मैंने भी उसे झट से मान लिया क्योंकी मैं उनका लाडला बेटा जो था। अब लाडला होने के लिए मैंने कोई बहादुरी का काम नहीं किया था। पापा उठने के लिए कहते थे तब मैं उठ जाता और वह जब बैठने के लिए कहते थे तब बैठ जाता। आसान शब्दों में कहां जाए तो उनकी हर एक आज्ञा का बिना सवाल किए मैं चुपचाप पालन करता था। इसलिए हम दोनों भाइयों में मैं ही पापा का लाडला बेटा था। दोनो भाई मतलब मैं और मेरा भाई अविनाश।
भाई एक अलग ही मटेरियल का बना था। बचपन में जब पापा फुटबॉल लाते थे तब भाई उससे खेलने के बजाए बास्केटबॉल मांगता था , पापा जब शिमला में पिकनिक का प्लान करते थे, तब भाई गोवा जाने की जिद करता था। पापा उससे भी इंजीनियरिंग करवाना चाहते थे पर भाईने जिद से वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी चॉइस कर ली। मुझे हमेशा भाई पर गर्व होता था। पापा की कोई बात उसे पसंद ना आए तो फेस टू फेस कहने की और जरूरत पड़ने पर झगड़ने के लिए भी वह तैयार रहता था। पर मुझमे वैसी हिम्मत कभी नही थी। मुझे पसंद ना आनेवाली कई बाते मैंने सिर्फ इसलिए की क्योंकी वह पापा को सही लगती थी। भाई इसीलिए मुझे "पापा का चमचा " कहता था।
अब यह सब जानकर अगर तुम्हे ऐसा लग रहा होगा जिस तरह प्रभु श्री राम पिताजी के आज्ञा अनुसार राजगद्दी त्यागकर वनवास के लिए निकल गए थे। वैसे ही अभिमान देशमुख सिर्फ सूर्यकांत देशमुख की आज्ञा के नुसार इंजीनियरिंग करने आया है तो यह आपकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। सच कहूँ तो मुझे ही घर से दूर कॉलेज चाहिए था। मुझे भी भाई की तरह बिंदास जिंदगी थी। मैं उस बोरिंग लाइफ से बहुत परेशान हो गया था। दो साल ज्युनियर कॉलेज में बिताए पर उन दो सालों में एक बार भी मैंने बंक नही किया। क्योंकी दिल मे डर था अगर पापा को पता चल गया तो क्या होगा ? गिटारिस्ट बनने का सपना भूल गया क्योंकी पापा को पसंद नही था, पापा के कहने के मुताबिक नाइन्थ स्टैंडर्ड के बाद फुटबॉल को हाथ तक नही लगाया था। पर अब मुझे मेरी मर्जी से जिंदगी जीने की चाह थी। मैं वह हर एक चीज करना चाहता था जो मुझे सही लगे और जिससे मुझे खुशी मिले। मैं जब यहां आने के लिए निकला तब पापाने मुझे यहां एक रिश्तेदार के बंगले पर रहने के लिए कहां था। पर मैने ही मना कर दिया क्योंकी अगर किसी रिश्तेदार के घर मैं रहूँगा तो उनके रूल्स फॉलो करने होंगे , मेरी हर एक बात की खबर माँ पापा को मिलती रहेगी , मुझे जो फ्रीडम चाहिए था वह वहांपर बिल्कुल नही मिलेगा इसलिए मैनेही होस्टल पर रहने का फैसला कर लिया। माँने पहले पहले
" इतने लाड़ प्यार से बड़ा हुआ है। होस्टल में कैसे रहेगा ? " ऐसा पापा से कहकर मुझे रोकने की कोशिश की, पर पापाने
" उसे जरा दुनिया समझने दो , कब तक उसे अपने आँचल में छिपाकर रखोगी ? "
कहकर माँ को चुप कर दिया । वह पापा की जिद से अच्छी तरह वाकिफ थी, इसलिए उसने आगे कुछ कहा नही कहा। मैं यहां आने के लिए निकला तब माँ बहुत दुःखी थी पर मैं तो यहां आकर बहुत खुश था।
मैं कॉलेज के पास पहुँच गया। गेट के बगलवाले स्टॉल के चाय की चश्मे की काँचपर जमी हुई भाप शर्ट्स से पोछकर मैंने चश्मा नाक पर चढ़ा दिया। सामने मेरा कॉलेज दिख रहा था। मैं बड़े लोहे के गेट से अंदर आया। छह मंजिली कॉलेज की बिल्डिंग बहुत बड़ी थी। यहां इंजीनियरिंग के साथ डिग्री , बी एड और लॉ भी था। ग्रांउड में लड़के क्रिकेट, फुटबॉल खेल रहे थे । उन्हें देखकर मुझे मेरा भी फुटबॉल खेलने का मन कर रहा था पर फिलहाल यह ख्याल साइड में रखकर मैंने बिल्डिंग में एंट्री ले ली। इतने बड़े बिल्डिंग में मुझे अपना क्लासरूम ढूंढना था क्योंकी पहला लेक्चर दस बजे शुरू होनेवाला था और मेरी घड़ी में अब दस बजकर बीस मिनट हुए थे। हर एक बोर्डपर लगाए हुए लिस्ट में मैं अपना नाम ढूंढते हुए आगे बढ़ रहा था। तब ही मेरे पीठपर किसीने थप्पी दी।
" फ्रेशर ?" पीछे से आवाज आई ।
मैंने पीछे मुड़कर देखा। पीछे घुटनों पर फटी जीन्स , ब्लेड से काटकर डिझाइन बनाए हुए टीशर्ट , गले मे लॉकेट , कान में बाली , कलर लगाए बाल अगर शुद्ध हिंदी में कहा जाए तो मवाली दिखनेवाले चार लड़के खड़े थे। उसमे से एक ने मुझसे सवाल पूछा था । मैंने हाँ कहते हुए सिर हिलाया ।
" नाम क्या है ? " दूसरे लड़केने पूछा ।
" अभिमान देशमुख " मैंने कहा ।
" क्लास ढूंढ रहे हो ? " पहले लड़केने पूछा ।
" हाँ।" मैंने कहा ।
" कौनसी स्ट्रीम ?"
" मेकॅनिकल "
" ओह्ह इंजीनियरिंग ?"
" येस " मैंने कहा।
" ए रॉकी, इसका नाम लिस्ट में चेक कर। देख कौनसी क्लास में है।"
" यह G 27 में है ।" तीसरे लड़के ने बताया ।
" G 27 में तो लेक्चर शुरू हो गया है। इस फ्लोर पर आखरी क्लास है। जल्दी जा।" उस लड़केने बताया। मगर यह बताते वक्त उसके होठोंपर मुझे एक कातिल मुस्कान दिखाई दी। कुछ तो गड़बड़ है ऐसा मुझे शक हो रहा था पर देर हुई इसलिए ज्यादा ना सोचते हुए मैं आखरी क्लासरूम के पास दौड़ते हुए आ गया और झट से अंदर चला गया।
अंदर एक लड़कि आइने के सामने खड़े होकर लिपस्टिक लगा रही थी , एक लड़की वॉशबेसिन में मुँह धो रही थी , एक लेडीज सर्व्हेन्ट पोंछा लगा रही थी , तब ही एक लड़की मुझे देखकर चिल्लाई और उसने झट से सामनेवाले टॉयलेट में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। वह सब देखकर मुझे एक बात समझ मे आ गई कि उन लड़कों ने मुझे पूरी तरह उल्लू बनाया है। मैं अब गर्ल्स वॉशरूम में आ गया था और किसी अमीरों की पार्टी में कोई भिखारी भूख से मजबूर होकर आता है। उसके बाद वह अमीर लोग भिखारी को जिस नजर से देखते है। उस नजर से वह लड़कियां मुझे देख रही थी। वह मुझे कुछ कहे इससे पहले मैं बिजली की गती से उस रूम से बाहर आ गया।
" अंधे हो क्या ? दिखाई नही देता।" उस रूम से आवाजें आने लगी। शायद उस लेडी सर्व्हेन्ट की होगी।
सामने वह चार लड़के खड़े थे, जिन्होंने मुझे वहां भेजा था। वह मुझपर हँस रहे थे। वह देखकर मुझे बहुत गुस्सा आ गया। उन लड़कों में से एक मेरे पास आया।
" सॉरी दोस्त .....बस मजाक किया। तुम्हारा फर्स्टफ्लोर पर थर्ड क्लासरूम है ।" उसने बताया।
मुझे उनपर गुस्सा आया था लेकिन उनसे झगड़ने के लिए मेरे पास वक्त नही था। मैं उनको इग्नोर करके फर्स्टफ्लोर के थर्ड क्लासरूम में आ गया। अंदर कोई भी टीचर मुझे नजर
Comments (0)