शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕
आज भी कई प्रेम कहानियां पूरी होती है, पर कुछ हमेशा हमेशा के लिए अधूरी रह जाती है। ज्यादातर प्रेम कहानियां अधूरी रह जाती है, लड़का और लड़की के परिवारों के ना कहने की वजह से और इन परिवारों की ना कहने की वजह भी बड़ी दिलचस्प रहती है। कुछ परिवारवालों को लड़का दिखने में अच्छा चाहिए तो कुछ परिवारों को बहु कमानेवाली चाहिए। कुछ लोगों को लड़की अपनी कुल की चाहिए तो कुछ लोगों को लड़का पराए गोत्र का चाहिए। कुछ लोग बहु से दहेज माँगते है तो कुछ लोग दामाद को ही घरजमाई बनाना चाहते है। कभी लड़केवाले राजी होते पर लड़कीवालों की ना रहती है। कभी लड़कीवालों की हां रहती है तो लड़केवाले ना कह देते है और अगर दोनों परिवार शादी के लिए हां कर भी दे तो कुंडली मे दोष आ ही जाता है।
मेरे ख्याल से किसीसे बेपनाह मोहब्बत करने के बाद सिर्फ घरवालों की मर्जी के खातिर उससे रिश्ता तोड़ देना , उससे हमेशा के लिए दूर जाना , उसे भूल जाना इससे बड़ा दुःख इस दुनिया में हो ही नही सकता।
लेखक की यह कहानी भी ऐसे दो किरदारों से जुड़ी है, जिनके परिवार , शहर , रास्ते एक दुसरे से काफी अलग है। पर उनका प्यार , उम्मीदे और किस्मत उन्हें उनकी जिंदगी एक साथ जिने के लिए मुमकिन करा देते है। अब उनकी जिंदगी कुदरत का मेल है , किस्मत का खेल है या फिर उनके प्यार का फल है यह कहानी पढकर आप ही तय किजीए।
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- Author: अभिषेक दळवी
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एक बार सबमिशन के एक दिन पहले दीप्ति ने उसकी आधी असाइनमेंट देव को पूरी करने के लिए दे दी। उसने असाइनमेंट के सिर्फ दस पेज लिखे थे। बाकी के दस पेज देवने लिख दिए और बाद में वह सो गया। रात के एक बजे उठकर मैंने और विकीने वह असाइनमेंट देव के बॅग से निकाली। दीप्ति ने लिखे हुए पेजेस पर हमने टोमॅटो सॉस गिराकर वह असाइनमेंट वापिस देव के बॅग में रख दी।दूसरे दिन उन दोनों में जोरदार झगड़ा हुआ। उसके बाद दो दिन देव हमसे बात तक नही कर रहा था। देव को गुस्सा जरूर आया था मगर हमने उसके लिए जो कुछ भी किया वह सही था, क्योंकी उसके बाद दीप्ति ने उसे कोई भी काम नही बताया।
सच बताऊ तो उन लड़कियों के पीछे पीछे जानेवाले हमारे क्लास के लड़कों में मैं बिल्कुल भी नही था। पता नही क्यों ? पर उन लड़कियों में मुझे कभी दिलचस्पी महसूस नही हुई। वैसे भी मैं पहले से ही लड़कियों से दूर ही रहता था।माँ मुझे बचपन में हमेशा कहती थी।
" हमारे साथ पढ़नेवाली लड़कियों को बहन की नजर से देखना चाहिए।"
इसीलिए मैं बचपन से अपने क्लास की सारी लड़कियों को बहन मानता था। इसी बात से भाई मुझे हमेशा चिढ़ाता था क्योंकी जब मेरे हाथ पर लड़कियों ने बांधी हुई राखियां रहती थी तब उसके हाथ पर लडकोयोंने बाँधे हुए फ्रेंडशिप बैंड रहते थे। कॉलेज में आने के बाद भी मैं लड़कियों से बहुत कम बातें किया करता था। पर भाई उसके मोबाइल से रात के एक बजे तक लड़कियों से बाते करता रहता था। ज्युनियर कॉलेज के वक्त कुछ लड़कियां मुझसे खुद से बात करने आती थी। दो लड़कीयों ने तो मुझे प्रपोज भी किया था पर मैंने ही उसे ना कह दिया। वह बहुत खूबसूरत दिखती थी पर वह लड़कियां रिलेशन के बारे में सीरियस नही थी। मुझे प्रपोज करने से पहले उसकी तीन अफेयर्स हो चुकी थी , ऐसी टाइमपास रिलेशनशिप में मुझे बिल्कुल भी इंटरेस्ट नही था। पृथ्वीराज - संयोगिता , बाजीराव - मस्तानी इनके बारे में मैंने बचपन में बहुत सुना था। मुझे ऐसी लड़की चाहिए थी जो सिर्फ मेरे लिए बनी हो और मैं उसके लिए, हम दोनो के जिंदगी में हमारे सिवा और कोई भी नही चाहिए था। आसान शब्दो मे बताया जाए तो एक भी एक्स बॉयफ्रेंड ना होगी ऐसी लड़की मुझे चाहिए थी , हर सीधे साधे लड़के की यही ख्वाईश रहती है वैसे ही मेरी भी थी। भाई मुझे हमेशा कहता था।
" बिना एक्स बॉयफ्रेंड की लड़की तुम्हे बिल्कुल नही मिलेगी। जमाना बदल चुका है। आजकल लड़कियां भी टाइमपास करती है। प्यार वैगरह सब फिल्मों मे रहता है। अब यही देख, तू लड़कियों के बारे में सीरियस हो, तुम्हारी एक भी गर्लफ्रेंड नही है और मैं एक साल में कम से कम पांच लड़कियों के साथ टाइमपास करता हूँ।"
मुझे भाई की सारी बाते सही लगती थी बस यह छोड़कर। सब लडकिया एक जैसी नही होती। मुझे हमेशा लगता था दुनिया मे कही ना कही मुझे जैसी चाहिए वैसी खूबसूरत , सीधी साधी लडक़ी जरूर होगी, मगर अब तक मुझे वह नही मिली थी। मैं जब भी ऐसा सोचता था मेरे आँखों के सामने उसका चेहरा आ जाता जिसे मैंने कॉलेज के पहले दिन बी एस्सी के क्लास में देखा था। उसे उस दिन के बाद मैं भूल ही गया था पर आज ही मैंने उसे देखा।
हमारी फर्स्ट सेमिस्टर खत्म होकर सेकंड सेमिस्टर शुरू हो गई थी। दूसरे ही दिन दो लेक्चर ऑफ थे। दीक्षित मॅमने असाईनमेंट दी थी वही सब कंप्लीट कर रहे थे। हम सारे असाईनमेंट देव के असाईनमेंट से कॉपी करते थे। पर उसने खुद की असाइनमेंट लिखना थोड़ी देर पहले शुरू की थी उसे पूरी करने में काफी वक्त लगनेवाला था , इसलिए मैं और विकी क्लास से निकलकर ग्राउंडपर आ गए। पर वहां डिग्री के लड़के पहले से ही क्रिकेट और बास्केट बॉल खेल रहे थे। हमे फुटबॉल खेलने के लिए जगह नही थी। तब हमारा ध्यान सेमिनार हॉल की तरफ गया। अंदर बी एस्सी का कोई प्रोग्राम चालू था। बाहर गर्मी के मौसम की वजह से बहुत गर्मी महसूस थी। इसलिए एसी में बैठने के लिए हम सेमिनार हॉल में घुस गए। वहां सिर्फ बी एस्सी वालो को अलाउड था इसलिए हमें हॉल से बाहर निकाल दिया। पर विकी हार माननेवालों में से नही था वह मौका देखकर मुझे लेकर वापिस अंदर आ गया और हम कोई ना पहचान पाए इसलिए सबसे पीछे जाकर बैठ गए।
सेमिनार हॉल में एक पर्सनॅलिटी डेव्हलोपमेंट का प्रोग्राम चालू था। वहां कॉन्फिडेन्स चेक करने के लिए हर एक स्टूडेंट को टास्क दिया था।उन्हें किसी भी टॉपिक पर बिना रुके पाच मिनट तक स्पीच देना। पहले एक लड़का आया उसने स्पीच की शुरुवात तो इंग्लिश में कर दी पर आगे क्या बोलना है यही भूल गया और एंडिंग हिंदी में करके चला गया।
" इसे कहते है। आए तो थे जोश से, जाना पड़ा बेहोशी से।" विकीने कमेंट कर दी।
उसके बाद एक लड़की आई वह इतने फ़ास्ट बोल रही थी कि कुछ समझ में ही नही आ रहा था।
" यह इतना फ़ास्ट बोल रही है जैसे इस हॉल में आतंगवादियो ने बॉम्ब रखा है और वह फटने से पहले इसे स्पीच खत्म करके यहां से निकलना है।" विकीने फिर कमेंट कर दी।
फिर एक लड़का आया। उसकी आवाज इतनी धीमी थी कि हम तक तो पहुँचना दूर उसके हाथ में पकड़े माइक तक भी पहुँच नही रही थी।
" इसे कहते है चालाखी....वह कुछ भी बोल नही रहा है सिर्फ होंठ हिला रहा है। मैं स्कूल में था तब ऐसा ही करता था। किसी को भी बिल्कुल शक नही होता था।" यह कमेंट भी विकीने ही की।
उसके बाद एक लड़का आया और दो मिनिट तक माइक पकड़कर वैसे ही खड़ा रहा। उसे समझ ही नही आ रहा था कि किस बात पर स्पीच दूँ। आखिर में कोई कहानी सुनकर वह चला गया।
" इसे कहते है बकवास। माइक पकड़कर बोलने के लिए कहां है ना तो कुछ भी बोल दो।" यह कमेंट भी विकीने ही कि थी। उसकी एक एक कमेंट्स सुनकर मुझे बहुत हँसी आ रही थी।
फिर एक लड़की स्टेजपर आई। उसका एटीट्यूड देखकर हमे लग रहा था अच्छा स्पीच देगी पर उसका टॉपिक सुनकर ही हमारा मुड़ ऑफ हो गया। उसका टॉपिक था ' फेमिनिज्म ' सबसे पहले भगवान ने उसे लड़की बनाकर पैदा किया इसलिए उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया। उसके बाद उसने बोलने की जो शुरुवात की वह रुक ही नही रही थी।
" तुम्हे पता है अभी, ब्लैक पैंथर यह दुनिया का रेअर एनिमल है। पर उसे जितना खुदपर गर्व नही होगा उतना इस लड़की को है। इसे ऐसा लग रहा है यह अकेली ही लड़की बनकर पैदा हुई है बाकी सब आसमान से टपके है।" यह कमेंट भी विकी कि ही थी।
वह लड़की अब औरतों पर होनेवाले अत्याचारों पर बोलने लगी और वह इस तरह से बोल रही थी कि कुछ पलों के लिए मुझे ऐसा लगने लगा। इस दुनिया का हर मर्द औरतों पर अत्याचार करने के लिए ही पैदा हुआ है औऱ अत्याचार करने के अलावा मर्दो के पास दूसरा कोई काम ही नही है। स्पीच के लिए पाँच मिनिट का टाइम दिया था। दस मिनट हो चुके थे फिर भी उसकी बकवास चालू थी। सबलोग बोर हो चुके थे पर वह लड़की माइक नही छोड़ रही थी। आखिर उसे रोकने के लिए विकी को ही आगे आना पड़ा। वह जब बोल रही थी तब विकी बीच बीच में तालियाँ बजाने लगा। हमे स्कूल में २६ जनवरी को दोपहर की धूप में ग्राउंडपर बिठाकर स्कूल में बुलाए गए नेते स्पीच देते थे, उस वक्त हम बहुत बोर हो जाते थे । तब ऐसे ही तालियां बजाकर हम उन्हें डिस्टर्ब किया करते थे। अब विकी हर मिनिट तालियां बजा रहा था और हॉल में मौजूद बाकी लड़के भी उसका साथ दे रहे थे। यह सब देखकर उस स्पीच देनेवाली लंडकी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।अखिर में
" लड़को को लड़कियों की रिस्पेक्ट करनी चाहीए।" ऐसी घोषणा देकर उसने अपनी बकवास बंद कर दी।
उसके बाद मेरे आगेवाले रो में एक लड़की बैठी थी वह उठकर स्टेज की तरफ बढ़ने लगी। उसकी पीठ मेरी तरफ थी मुझे उसका चेहरा दिख नहीं रह था पर मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं उसे पहचानता हूँ। या फिर मैंने उसे पहले भी देखा है। उसने स्टेजपर जाकर माइक लिया ओर हमारे तरफ मुड़ गई। उसका चेहरा देखकर मैं अपने आप कुर्सी में ठीक से बैठ गया , मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगी। यह वहीं लड़की थी जिसे मैंने कॉलेज के पहले दिन देखा था। सफेद चूड़ीदार , खुले हुए बाल , लाल लिपस्टिक लगे होठोंपर मुस्कुराहट , मुलायम कानों में झूलनेवाले झुमके उसे देखकर मुझे स्टेज के नजदीकी रो में जाकर बैठने की इच्छा हो रही थी। पर डर था कोई हमे पहचानकर फिर बाहर ना निकल दे इसलिए मजबूरी से वही बैठा रहा। उसने अपने नाजुक उंगलियो से माइक पर टकटक की और बोलने लगी।उसका आवाज मैं काफी दिनों बाद सुन रहा था ऐसा लग रहा था कि वह सिर्फ बोलती रहे और मैं उसे देखता रहूँ। वह किसी लड़की की स्टोरी बता रही थी, जो जन्म से कभी भी खुद की मर्जी से नही जी पाई थी। हर बार उसे उसके पिताजी के फैसले मानने पड़े थे, इतना ही नही उसे अपना लाइफ पार्टनर चुनने की भी आजादी नही थी। उसका स्पीच इतना इमोशनल था की हॉल में बैठा हर कोई शांत बैठकर वह सुन रहा था। इतना ही नही विकी भी शांत बैठकर उसकी स्टोरी सुन रहा था। लगातार चार मिनिट तक वह बोल रही थी। उसके बाद उसकी आवाज नाजुक हो गई। उसकी आवाज में आया वह बदलाव झट से मेरी समझ में आ गया । मैंने ठीक से उसकी तरफ देखा तब मुझे पता चला उसके आंखों से आंसू बह रहे है। उसकी यह हालत देखकर मैं बेचैन होने लगा। अचानक उसने माइक रख दिया और रोते हुए स्टेज से उतर गई। आगे वाले रो में बैठी उसकी फ्रेंड्स उठकर उसकी तरफ जाने लगी। उसकी ऐसी हालत देखकर मुझसे देखी नही जा रही थी। मै भी उन लंडकियों के साथ उसके पास गया। उसकी फ्रेंड्स उसके चारों तरफ खड़ी थी। मैंने अपनी बॅग से पानी की बोतल निकाली और उसे देने लगा। उसने वह मेरे हाथ से ले ली और एक बार मेरी तरफ देखा। उसकी आंखे आंसुओ से भरी थी ,नाक टोमॅटो की तरह लाल हो चुका था पर वह रोते हुए भी काफी खूबसूरत लग रही थी। मेरे हाथ से बोतल लेते समय उसकी उँगलियों का स्पर्श मेरी उँगलियों को हुआ। मुझे ऐसा लगा मेरी उँगलियों से पूरे शरीर में एक बिजली का छोटा झटका लगा है। उन दो पलों के लिए मैं सब कुछ भूल गया। ऐसा लग रहा था हम दोनों के सिवा पूरी दुनिया रुक गई है, मैं सिर्फ उसे देखे जा रहा था। उसने पानी पीकर मेरी बोतल मुझे वापिस दे दी। वह लेते वक्त मैंने उसे स्माइल देने की कोशिश की पर तब ही मेरे पीठपर थप्पी पड़ी। मैंने पीछे मुड़कर देखा पीछे एक आदमी खड़ा था यह वही आदमी था जिसने कुछ देर पहले मुझे ओर विकी को हॉल से बाहर निकाला था। अब उसी ने फिर मुझे बाहर निकाला मेरे साथ विकी को भी बाहर आना पड़ा। विकी मुझपर गुस्सा था।
" तुम्हे क्या जरूरत थी हीरो बनने की ? अपनी क्लास के लड़कियों को कभी पेन तक नही दिया है तुमने और उस लडक़ी के लिए डायरेक्ट बोतल लेकर गए।" विकी बोल रहा था।
वह मुझे कुछ भी बोले, अब मुझे उसका बुरा नही लग रहा था। स्मिता स्टेज के ऊपर जाने के बाद हमें हॉल से बाहर निकानले तक वह छह मिनिट कितनी जल्दी बीत गए पता ही नही चला। बीच के कुछ महीनों में मैं स्मिता को पूरी तरह से भूल चुका था पर यह छह मिनिट मैं कभी नही भूल सकता था।
... स्मिता ...
आज का दिन मेरे जिंदगी का बहुत स्पेशल दिन था। लाइफ में पहली बार मैंने इतनी फ्रँकली बाते की थी। मैंने स्पीच में जो स्टोरी बताई वह दरअसल मेरी ही थी।बचपन से दिल मे जो दुःख भरा पड़ा था वह आज मैंने बोल दिया और सब को
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