शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕
आज भी कई प्रेम कहानियां पूरी होती है, पर कुछ हमेशा हमेशा के लिए अधूरी रह जाती है। ज्यादातर प्रेम कहानियां अधूरी रह जाती है, लड़का और लड़की के परिवारों के ना कहने की वजह से और इन परिवारों की ना कहने की वजह भी बड़ी दिलचस्प रहती है। कुछ परिवारवालों को लड़का दिखने में अच्छा चाहिए तो कुछ परिवारों को बहु कमानेवाली चाहिए। कुछ लोगों को लड़की अपनी कुल की चाहिए तो कुछ लोगों को लड़का पराए गोत्र का चाहिए। कुछ लोग बहु से दहेज माँगते है तो कुछ लोग दामाद को ही घरजमाई बनाना चाहते है। कभी लड़केवाले राजी होते पर लड़कीवालों की ना रहती है। कभी लड़कीवालों की हां रहती है तो लड़केवाले ना कह देते है और अगर दोनों परिवार शादी के लिए हां कर भी दे तो कुंडली मे दोष आ ही जाता है।
मेरे ख्याल से किसीसे बेपनाह मोहब्बत करने के बाद सिर्फ घरवालों की मर्जी के खातिर उससे रिश्ता तोड़ देना , उससे हमेशा के लिए दूर जाना , उसे भूल जाना इससे बड़ा दुःख इस दुनिया में हो ही नही सकता।
लेखक की यह कहानी भी ऐसे दो किरदारों से जुड़ी है, जिनके परिवार , शहर , रास्ते एक दुसरे से काफी अलग है। पर उनका प्यार , उम्मीदे और किस्मत उन्हें उनकी जिंदगी एक साथ जिने के लिए मुमकिन करा देते है। अब उनकी जिंदगी कुदरत का मेल है , किस्मत का खेल है या फिर उनके प्यार का फल है यह कहानी पढकर आप ही तय किजीए।
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- Author: अभिषेक दळवी
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यह वही लड़का था जो कॉलेज के पहले दिन हमारे क्लास में आकर बैठ गया था , उसे मैंने उस दिन के बाद और एक बार देखा था शायद दो महीने पहले देखा था। उस दिन मैं और प्रिया लायब्ररी में बैठे थे। शाम को घर निकलते वक्त जरासी देर हुई। हम जब वहां से निकल रहे थे तब सीढियों से दो लड़के दौड़ते हुए गए उन लड़कों में यह था। उस वक्त मेरी बॉटल का पानी खत्म हो चुका था और प्रिया को भी प्यास लग रही थी। हमारे वॉशरूम के सामनेवाला कूलर बंद था इसलिए हम ऊपर के फ्लोरपर लड़कों के कूलर के पास पानी भरने के लिए गए। तब हमने देखा लड़को की वॉशरूम में कोई फँस गया है। उस वॉशरूम के दरवाजे पर अंदर से दस्तक हो रही थी। दरवाजे को बाहर से कुंडी थी वह कुंडी खोलने के लिए मैं जा रही थी तब ही प्रियाने मुझे रोक लिया।
" दरवाजा खोल मत। अंदर जो कोई भी बंद है वह हमपर ही इल्जाम लगाएगा की हमने उसे बंद किया है।" प्रियाने कहा।
" पर प्रिया अंदर जो कोई भी है उसे बाहर निकालना होगा, नही तो रात भर अंदर ही बंद रहेगा।" मैंने कहा।
" एक काम करते है। वॉचमैन को बताते है।"
मुझे साथ लेकर वह कॉलेज के गेट तक आ गई। हमने वॉचमैन को बताया भी पर उसने सुना या नही वह नही पता क्योंकी वह उस वक्त मोबाइल पर बात कर रहा था ।
दूसरे दिन सुबह हमे पता चला कि एक प्रोफेसर को रातभर किसीने वॉशरूम में बंद कर दिया था। दूसरे दिन कॉलेज में इंक्वायरी हुई। मुझे शक था जिन लड़को को मैंने सीढियो से नीचे जाते देखा था यह उन्ही ने किया होगा। मैं उन दोनों के बारे में बतानेवाली थी पर प्रियाने मुझे रोक दिया।
" कोई जरूरत नही है। उस प्रोफेसर के लिए इतनी हमददर्दी दिखाने की। उसने हमें लायब्ररी के बाहर डाँटा था पता है ना ।"
हमारी लायब्ररी के बाहर एक झेरॉक्स का दुकान था। वहां हमेशा भीड़ रहती थी। एक बार कॉलेज छूटने के बाद हम लडकिया झेरॉक्स लेने के लिए वहां खड़ी थी। उसी फ्लोर पर आखरी क्लास थर्डयीअर इंजीनियरिंग का था। वहां से वह प्रोफेसर आया और हमे डांटने लगा।
" यहां खड़ी रहकर तुम लोग हँसी मजाक क्यों कर रहे हो। लायब्ररी में जाकर पढ़ाई नही कर सकते।"
" सर कल ही एग्जाम खत्म हुई है। लायब्ररी को भी थोड़ा आराम मिलना चाहिए ना।" मोनिका ने हँसते हुए कहा ।मोनिका बिंदास लड़की थी। बात करते वक्त सामनेवाला कोई भी हो उसे उससे बिल्कुल डर नही लगता था।
" माँ बाप ने आराम करने के लिए कॉलेज भेजा है ?" उस प्रोफेसरने मोनिका से कहा।
हमे उस वक्त बहुत गुस्सा आया था। पहली बात वह इंजीनियरिंग का प्रोफेसर था। हमसे उसका कुछ संबंध नही था इतना ही नहीं उसने हमारे माँ बाप का जिक्र किया। इसलिए हमारे ग्रुप की सारी लडकियां उसपर नाराज थी। जब हमे पता चला कि वह रातभर वॉशरूम में बंद था तब हंस हँस कर हम पागल हो गए।
मेरी माँ हमेशा मुझसे कहती थी " जो अपने गुरुओं को तकलीफ देता है वह जिंदगी में कभी भी कामियाब नही हो सकता।"
मेरी माँने बी एड किया था और उसे भी टीचर बनाना था इसीलिए वह ऐसा कहती थी यह बात मुझे बाद में पता चली। वैसे देखा जाए तो टीचर्स की मेरी लाइफ में बहुत इम्पोर्टन्स था। मैं बचपन मे बहुत डरपोक थी तब परांजपे मॅम मुझे सबके सामने खड़े रहकर कुछ स्पीच देने के लिए कहती थी उन्ही के वजह से मेरा कोल्फिडेंस बढ़ गया था। कॉलेज जाने के बाद एक दरेकर नाम की मॅम थी उन्ही के वजह से मुझे बुक्स पढ़ने मे दिलचस्पि बढ़ गई थी।
पर इस दुनिया में जैसे अच्छे लोग रहते है वैसे बुरे लोग भी रहते है। हमारे गाँव के स्कुल को सरकार से गरीब बच्चों के लिए अनाज मिलता था। उस स्कूल में एक घाडगे नाम का व्हाईस प्रिन्सिपल था वह अनाज चुराया करता था। गाँव की सब बातें हमे हमारे नौकरो से पता चलती थी। एक दिन घाडगे के घर मे आग लग गई।मुझे उस वक्त उसके लिए बिल्कुल भी हमदर्दी महसूस नही हुई बल्कि उसे उसके किए की सजा मिली इस बात की खुशी होने लगी। वैसी ही खुशी वह प्रोफेसर वॉशरूम में अटकने के बाद हुई थी। इसलिए उसे बंद करने वाला वह लड़का मुझे अच्छी तरह से याद था।
सेकेंड सेमिस्टर शुरू होकर बहुत दिन बीत गए थे। कॉलेज में हम कुछ लड़कियों का अच्छा ग्रुप बन गया था। मेरी कई फ्रेंड्स बिना डरे लेक्चर बंक किया करती थी। मैने कभी भी लेक्चर बंक वैगरह नही किया क्योंकी मैं कुछ ज्यादा ही सिन्सीयर थी। कई बार ऐसा भी होता था आधे से ज्यादा क्लास मास बंक करता था पर मैं ओर मेरे जैसी कुछ लड़कियां हम क्लास में ही बैठे रहते थे। इतने कम स्टूडेंट्स के लिए तो कोई प्रोफेसर लेक्चर नही लेता था तो वह लेक्चर्स ऑफ जाते थे फिर मैंने भी सोच लिया अगर लेक्चर में बैठकर भी लेक्चर ऑफ जा रहे है तो बंक करने में क्या गलत है और वैसे भी हर रिजल्टे में मेरा रैंक टॉप टेन में ही रहता था। ज्युनियर कॉलेज में भी मेरा रैंक इसी तरह रहता था पर इस रैंक का मेरे फ्यूचर में कुछ भी फायदा नही था और मामाने भी मुझे कॉलेज लाइफ एन्जॉय करने के लिए ही यहां भेजा था। फिर मैंने भी सोच लिया यह कुछ आदर्शवादी उसूल ना फ़ॉलो करना ही मेरे लिए बेहतर है। इसलिए कभी कभी मैं भी लेक्चर्स बंक करने लगी। हमे मैथ्स पढ़ाने के लिए मेहता नाम के सर थे। वह कभी कभी लेक्चर खत्म होने के बाद भी पढ़ाते रहते थे। एक दिन लंच टाइम के पहले उनका लेक्चर था। लेक्चर खत्म होकर दस मिनट हो चुके थे पर उन्हें पता ही नही था की लंच टाइम शुरू हो गया है। वह फिर भी पढ़ा रहे थे। हमें बहुत भूख लगी थी मेरे आगे के बेंचपर एक सोनाली नाम की लड़की थी उसने टिफिन में गुलाबजामुन लाए थे। उसने दो खाकर टिफिन हमें दे दिया। मेहता सर जब बोर्ड पर कुछ लिखने के लिए मुड़ जाते थे तब मेरे ग्रुप की लड़कियां एक एक करके गुलाबजामुन खाती थी। गुलाबजामुन मेरा वीक पॉइंट था , मुझे भी खाने का बहुत मन कर रहा था पर मेरी हिम्मत नही हो रही थी। हमारे ग्रुप के सब लड़कियों ने एक एक खा लिए थे। अब सिर्फ दो ही गुलाबजामुन बचे थे मेरी बेचैनी बढ़ रही थी। सर की नजर बोर्ड की तरफ है देखकर मैने झट से वह दो उठा लिए और झट से खा लिए, पर तब ही सर मुड़ गए और उन्होंने मुझे देख लिया। उन्होंने मुझे देखा है यह देखकर मैं वैसे बर्फ की तरह जम गई। " रंगे हाथ पकड़ना " किसे कहते है इसका मतलब मुझे अब समझ रहा था। मुँह में रहे गुलाबजामुन मैं चबा भी नही सकती थी वैसे ही मुँह का गुब्बारा बनाकर मैं सर की तरफ देख रही थी। मेरी बगल में बैठी लड़कियां मुझे देखकर हँसी रोक नही पा रही थी। मुझे देखकर सर समझ गए लेक्चर खत्म होकर लंचटाइम शुरू हो गया फिर सर चुपचाप चले गए। तब से सब को आयडिया मिल गया। मेहता सर का जब लंचटाइम से पहले लेक्चर रहता था और लेक्चर खत्म होने के बाद भी सर पढ़ाते रहते थे तब कुछ लड़के टिफिन का ढक्कन जोर से जमीन पर गिराकर आवाज करते थे। तब अपने आप सर के समझ आता था लेक्चर खत्म हुआ है फिर वह चले जाते थे ।
घर मे हम लड़कियां बहुत मजे किया करते थे। घर मे काम करनेवाली मेड शाम को सात बजे तक खाना बनाकर चली जाती थी। उसके बाद पूरा घर हमारे ही कब्जे में रहता था। फिर हमारी मस्ती शुरू हो जाती थी। वैसे भी घर मे रहकर हम और कर भी क्या सकते थे क्योंकी रात के आठ बजने के बाद बंगले के बाहर जाने के लिए कुलकर्णी आंटीने पाबंदी लगाई थी। वैसे इसमे वह बिल्कुल भी गलत नहीं थी। हमारे बंगले की ओस पड़ोस की जगह सुनसान थी इसलिए वह रात के समय हम जैसे जवान लड़कियों को बाहर नही जाने दे सकती थी। फिर हम घर में ही कुछ ना कुछ टाइमपास किया करते थे। घर में एक पुराना टीव्ही था पर उसमे सब बोरिंग चैनल्स थे। हर सैटरडे की रात को ग्यारह बजे उसपर एक हॉरर सीरियल टेलीकास्ट होती थी। सारे लाइट्स ऑफ करके वह सीरियल देखने मे हमे बहुत मजा आता था।
एक बार रात को ग्यारह बजे एक कुकिंग शो देखकर हमे बासुंदी खाने की इच्छा हुई। बासुंदी के लिए दूध कम था तब हमने खीर बनाने का फैसला किया। हर किसी के पास खीर की अलग अलग रेसिपी थी। ग्यारह बजकर तीस मिनिट तक हमने रेसिपी फायनल की और ग्यारह पैतालीस तक हमने खीर का कुकर गैस के बर्नर पर रख दिया फिर लिव्हिंग रूम में आकर टीव्ही देखने लगे। कुकर खराब था या फिर हमने उसे ठीक से बंद नही किया था यह पता नही पर कुछ देर बाद किचन से जोरदार आवाज आई। हमने जाकर देखा तो कुकर जमीन पर गिरा था और किचन की चारो दीवारों पर खीर के छीटे उड़े थे। आवाज बहुत जोर से हुई थी रात के बारा बजे ओस पड़ोस के सारे लोग हमारे घर मे इकट्ठा हो गए थे उस वक्त कुलकर्णी आंटी की बहुत डाँट सुननी पड़ी थी।
कुलकर्णी आंटी व्हेजिटेरियन थी इसलिए हमें भी नॉनव्हेज खाने पर पाबंदी थी। हमने थर्टी फर्स्ट नाइट सेलिब्रेट करने का प्लान बनाया। उस दिन कुलकर्णी आंटी के घर के सारे लोग शाम को उनके किसी रिश्तेदार के पास चले गए थे। वह डायरेक्ट सुबह वापिस आने वाले थे तब हमने चिकन बनाने का तय किया। दो किलो चिकन लेकर आ गए। मैं , प्राची ओर कुसुमने चिकन ग्रेव्ही बनाना स्टार्ट किया। करीब एक घंटे बाद चिकन पकने की खुशबू आने लगी। तब ही हमें दिखाई दिया कुलकर्णी आंटी के बंगले की लाइट ऑन हुई है। आंटी घर वापस आई थी। हमारे अंदाज से वह सुबह आनेवाली थी और उसके हिसाब से हमने प्लानिंग की थी पर कुछ प्रॉब्लेम हुआ इसलिए वह जल्दी घर आ गए थी और वही प्रॉब्लेम हुई । उन्हें चिकन की स्मेल आ गई हमारे आसपास सारे व्हेजिटेरियन लोग थे इसलिए उन्हें हम पर ही शक हुआ। मैं किचन में थी तब दरवाजे पर दस्तक हुई। प्राचीने पिनहोल से बाहर देखा और हमें बताया की दरवाजे के बाहर कुलकर्णी आंटी खड़ी है। वह सुनकर हम सब की हवा टाइट हो गई। हम चिकन ग्रेव्ही घर में कहीं छिपा भी नहीं सकते थे आंटी दो मिनट में ढूंढ लेती और घर का डस्टबिन भी मेन डोर के पास ही था आंटी वहीं खड़ी थी। प्रियाने सारी चिकन ग्रेवी एक थैली में डाल दी और पिछले दरवाजे से बंगले के गार्डन में चली गई। मैंने झट से चिकन बनाया हुआ बर्तन धो दिया और दरवाजा खोल दिया। कुलकर्णी आंटीने पूरे घर की छानबीन ली पर उन्हें कुछ भी नहीं मिला पर जब वह पिछले दरवाजे से गार्डन में चली गई, तब मुझे डर लगने लगा था क्योंकी प्रिया चिकन लेकर वहीं गई थी पर आंटी को वहांपर भी
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