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Read book online «शायद यही है प्यार by अभिषेक दळवी (best adventure books to read .TXT) 📕».   Author   -   अभिषेक दळवी



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कुछ नहीं मिला। जब मैंने प्रिया को चिकन ग्रेवी के बारे में पूछा तब उसने,

" डोंट वरी .........चोरी करके सबूत मिटाना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है।" ऐसा डायलॉग बोल दिया।

दूसरे दिन सुबह हमारे बंगले के दाए तरफवाले बंगले में से गुस्से से चिल्लाने की आवाज आने लगी। वह लोग व्हेजिटेरियन थे और उनके गार्डन में किसीने चिकन डाल दिया था इसलिए वह लोग बहुत भड़क गए थे। वह देखकर हम सब प्रिया की तरफ देखने लगे तब उसने,

" दूसरा कोई ऑप्शन ही नहीं था यार, इसलिए मैंने चिकन ग्रेवी जल्दबाजी में फेंक दी वह उनके गार्डन में जाकर गिर गई।" गर्दन झुकाकर उसने कहा।

" चोरी करके सबूत मिटाना तो हमारे बाएं हाथ का खेल है।" ऐसे डायलॉग मारनेवाली रात की प्रिया और अबकी डरी हुई प्रिया देखकर हम काफी देर तक हँस रहे थे।

……

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

देखते ही देखते हैं हमारी सेकंड सेमिस्टर भी खत्म हो गई। मुझे छुट्टी शुरू होने के बाद मैं अपने घर आ गई जिस दिन में घर आई उसी दिन शाम को पापा मेरे रूम में आ गए।

" सोनू, कॉलेज कैसे चल रहा है ?"

" अच्छा चल रहा है।" मैंने कहा।

" प्रताप पूछ रहा था उसकी होनेवाली बीवी कब उसके पास आने वाली है ?" पिताजीने कहा।

प्रताप का नाम सुनकर मेरा मूड ऑफ हो गया।

" सोनू मुझे लगता है हमें पढ़ाई बढ़ाई के झंझट में नहीं पड़ना चाहिए, हमें नौकरी थोड़ी न करनी है।

मेरी बात मानो और छोड़ दो यह पढ़ाई। दो महीने बाद तुम्हारी शादी कर देता हूँ, क्यों ठीक है ना ?" पापाने पूछा। मैं पढ़ाई छोड़कर शादी करूँ इसलिए वह मीठी मीठी बात करके मेरा ब्रेनवाशिंग कर रहे थे। पर मैं भी हार माननेवाली नहीं थी। मामा की मदद से काफी मुश्किल से मुझे यह तीन साल मिले थे वह मैं बर्बाद नहीं करना चाहती थी।

" पापा सिर्फ दो साल बाकी बचे है। उसके बाद मैं करुँगी ना शादी।" गर्दन झुकाकर मैंने कहा।

मैं हमेशा पापा से बात करते वक्त सर झुकाकर बात करती थी। मुझे उनसे बहुत डर लगता था। जब सामनेवाले के पास कुछ काम रहता था तब ही पापा उससे मीठी मीठी बात करते थे। बाकी वक्त उनका दिमाग गरम ही रहता था। मैंने उनकी तरफ देखा मेरा जवाब सुनकर उनका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था। पर वह फिर भी झूठी मुस्कुराहट चेहरे पर लाकर मीठीमीठी बात करके समझाने लगे।

" तुम्हें पता है सोनू, कल सुबह प्रताप तुम्हें घुमाने ले जाने के लिए हमारे घर आ रहा है। क्या कहते हो तुम लोग उसको ? डेट ना .....डेट पर ले जानेवाला है तुम्हें, उसके साथ डेट पर जाओ , मजे करो फिर देखना तुम ही कहोगी। पापा यह कॉलेज वगैरह बस हो गया आप अब मेरी शादी करा दो।" पापाने कहा।

यह सुनकर ही मुझे डर लगने लगा। प्रताप पहले भी एक बार मुझे लेकर घूमने के लिए गया था। वह दिन आज भी मुझे अच्छी तरह से याद है। पापा से पूछ कर वह मुझे उसकी जीप से गाँव के पीछेवाले पुराने किलेपर लेके गया। उस किले के आसपास जंगल का सुनसान इलाका था। वह ऐसी जगह मुझे क्यों लेकर आया है यह मेरे समझ में नहीं आ रहा था। वह मुझे जंगल के अंदर ले जाने लगा। मैंने ऐसी जगह पर जाने के लिए सख्त मना कर दिया, फिर वह मुझे समझाने लगा। मैं नहीं मान रही हूँ यह देखकर मेरा हाथ पकडकर मुझे जबरदस्ती ले जाने लगा। मैंने उसके हाथ को काटकर अपना छुड़ा लिया और दौडते हुए रास्ते तक आ गई। वहां से ऑटो पकड़कर सीधा घर चली आई उस दिन मैं बहुत डर गई थी। उसने मेरा हाथ इतना कसकर पकड़ा था कि उसके नाखूनों के निशान मेरे हाथ पर दिख रहे थे। वह कितना बेरहम हैं यह मैंने उस दिन देख लिया था। अब मैं उससे मिलना भी नहीं चाहती थी पर पिताजी को ना कैसे कहूँ यह समझ में नहीं आ रहा था। पापाने मान ही लिया था की प्रताप मेरा पतीहै और प्रताप से ना मिलने के लिए मेरे पास कोई खास वजह भी नहीं थी। क्योंकी कल का पूरा दिन में घर पर ही रहनेवाली थी। तब ही माँ मेरे रूम में आ गई।

" सुनिए..... मैं ऐसा कह रही थी कि सोनू की शादी के लिए अब भी दो साल बाकी है। शादी के पहले ऐसे किस लड़के के साथ घूमने के लिए भेजना ठीक नहीं है। लोग क्या सोचेंगे ?"

माँ मेरी तरफ से पिताजी को समझा रही थी। शायद उसे भी पता चल गया था कि मैं प्रताप के साथ नहीं जाना चाहती।

" अब तुम मुझे सिखाओगी क्या करना चाहिए और क्या नहीं ?" पिताजी माँ पर चिल्लाए।

" उसे शादी के लिए मनाना नहीं है क्या ? जिंदगी भर बिनब्याही रखनेवाली हो क्या ? लड़का अच्छा है , पैसेवाला है जितनी जल्दी शादी हो उतना अच्छा है।" पापा अब गुस्से से बात करने लगे थे।

उनके गुस्से की वजह से माँ के आँखों में आंसू आ गए। माँ पहले से कमजोर दिल की थी। वह पापा के सामने कभी ऐसी कुछ बातें नहीं किया करती थी और जब करती थी तब ऐसा कुछ हो जाता था।

" सोनू मैं क्या कह रहा हूँ ध्यान से सुनो।तुम कल प्रताप के साथ घूमने जाने वाली हो, वैसा मैंने प्रताप से कह दिया है समझी।" पिताजीने मुझे ऑर्डर ही दे दी।

" मैं कल मामा के पास जानेवाली हूँ।" मैंने डरते हुए कह दिया।

मैंने जानबूझकर मामा का नाम लिया। मुझे पता था मामा के सामने पिताजी की एक नहीं चलनेवाली। मामा के पास जाने का कोई प्लान नहीं था फिर भी मैंने बोल दिया।

अब यह किसने तय किया पापाने गुस्से में पूछा।

" मैंने " माँने कहा। इस झूठ में वह भी मेरा साथ दे रही थी।

" तुम लोग भी ना ......तुम्हें जो करना है वहकरो।" कहकर पिताजी गुस्से से ही बाहर चले गए।

पिताजी के जाने के बाद मैंने चैन की साँस ली। एक बात मेरी समझ में आ गई थी। इस सबसे मैं दूर भाग सकती हूँ बच नही सकती। तीन सालों में से एक साल खत्म हो चुका था। दो साल बाद यही मेरा फ्यूचर था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

... अभिमान ...

दूसरी सेमिस्टर भी खत्म हो गई थी। अब छुट्टियां शुरू हो गई थी। मैं अब अपने घर मतलब नासिक में आ गया था। यहां आने बाद माँ मुझसे कुछ ज्यादा ही प्यार कर रही थी। और क्यों ना करे ? सीधी सी बात है इतने दिनों बाद कोई लड़का अपने घर जा रहा है तो माँ तो खुश होगी ही ना।

घर आने के बाद हमेशा खाने में मेरे पसंद की डिश बन रही थी। पाव भाजी , पालक पनीर , बटर चिकन , पनीर मखनी , तवा मटन , दम बिरयानी और सबसे फेवरेट मिसल पाव यह सब मैं मेस में बिल्कुल भी नहीं मिलता था। वैसे हम कभी कभी बाहर के होटल में जाते थे पर माँ के हाथ के खाने की टेस्ट ही कुछ अलग रहती है इसलिए यहां आने के बाद मैं सब कुछ पेट भर के खा रहा था। घर में भाई नहीं था इसलिए कभी कभी अकेलापन महसूस होता था। पर बाकी टाइम मजा आ रहा था , मैं छुट्टियां एंजॉय कर रहा था।

एक दिन आधी रात को फोन की रिंग बजी। बहुत देर तक रिंग बज कर बंद हुई पर किसी ने उठाया नहीं। दूसरी बार रिंग बजने लगी मैं फोन अटेंड करने के लिए उठा तब ही फोन की रिंग बजना बंद हो गया शायद माँ या फिर पापाने उनके रूम में से फोन उठाया होगा। मैं फिर बेडपर आकर लेट गया। एक बार नींद टूटने के बाद मुझे जल्दी नींद नहीं आती थी अब भी नहीं आ रही थी। कुछ देर बाद मुझे पापा के ऊँचे आवाज में बात करने की आवाज आने लगी। मैंने ठीक से सुनने की कोशिश की वहपापा की आवाज थी इतनी रात को पापा जोर जोर से क्या बोल रहे हैं यह सुनने के लिए मैं अपने रूम से बाहर आकर उनके रूम के पास आकर खडा हो गया। उनके रूम का दरवाजा और जमीन के बीच में से रोशनी दिखाई दे रही थी। इसका मतलब पापा के बेडरूम की लाइट ऑन थी। इतनी रात होने के बावजूद भी माँ पापा सोयह नहीं थे मतलब जरूर कुछ टेंशन की बात थी। पापा माँ से बात कर रहे थे वह क्या बात कर रहे है वह समझ में नही आ रहा था पर आवाज से वह गुस्से में लग रहे थे। थोड़ी देर पहले जो फोन आया था उसके बाद यह सब शुरू हो चुका था। वह फोन किसका था यह भी पता नहीं चल रहा था। कुछ समय बाद पापा शांत हो गए उनके बेडरूम की लाइट ऑफ हो गई। फिर मैं भी अपने रूम में आकर सो गया।

सुबह ब्रेकफास्ट करते वक्त भी पापा का मूड खराब था। माँ उदास लग रही थी। मैं उस फोन के बारे में पापा को पूछनेवाला था पर सुबह सुबह वह बात सुनकर पापा फिर गुस्सा हो जायेंगे यह सोचकर मैने नहीं पूछा। पापा ऑफिस जाने के बाद मैं किचन में माँ के बगल में आकर खडा हो गया।

" क्या काम है ?" मुझे ऐसा खड़ा देखकर माँने पूछा।

" कुछ नहीं। तुम्हें कुछ मदद चाहिए क्या ?यह पूछने आया था।" मैंने कहा।

" अभिमान, मैं तुम्हे अच्छी तरह से जानती हूँ। क्या काम है वह बताओ।" माँने कहा।

उसे पता था। मेरा जब कोई काम होता है तब मैं सामनेवालों को इस तरह मक्खन लगाने की कोशिश करता हूँ।

माँ रात को फोन किसका आया था। सुबह से पापा का मूड खराब है कुछ सीरियस है क्या ?" मैंने पूछा।

" तुम्हारे संदेशभाईने शादी की है।"

" कब ?" मैंने चौंककर पूछा।

" कल ......भाग कर शादी की है।" माँने कहा।

वह सुनकर मुझे शॉक लगा। संदेशभाई मतलब मेरे चाचा का बेटा। वह, मैं और भाई हम तीनों बचपन में एक साथ ही रहते थे। वह हम में सबसे बड़ा था। मैं जब टेंथ स्टैंडर्ड में था तब उसने अपना एम बी ए कम्प्लीट किया था। उसके बाद वह मुंबई चला गया और फिर हमारा कॉन्टैक्ट नहीं हो पाया। वह भाई के उम्र का होने की वजह से उन दोनों की अच्छी बनती थी वह भाई के कॉन्टैक्ट में रहता था।

" पर पापा इतने क्यों गुस्सा थे ?" मैंने पूछा।

तुम्हारे पापा उसकी शादी उनके दोस्त के बेटी से बना रहे थे, पर संदेश किसी और लड़की से प्यार करता था। तुम्हारे भाई को इस सब के बारे मैं पता था लेकिन फिर भी उसने तुम्हारे पिताजी को नहीं बताया इसलिए वह गुस्सा है। जब माँने भाई का नाम लिया तो मुझे बिल्कुल भी शक नहीं हुआ। भाई कुछ भी कर सकता हैं यह मुझे अच्छी तरह पता था। संदेशभाई को भागने की आयडिया भी भाई ने ही दिया होगा ऐसा अब मुझे शक हो रहा था।

शाम को जब पापा घर आए तब भी उनका मुड़ ऑफ था। रात को जब मैं माँ और पापा खाना खाने के लिए बैठ गए। तब पापा बोलने लगे।

" अभी, तुम्हारे संदेशभाई ने क्या किया है यह तुम्हे पता ही होगा।

उसने जो किया उस बात का मुझे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगा। मुझे तब गुस्सा या जब पता चला कि तुम्हारा भाई भी इस सब में उसके साथ शामिल था। तुम्हारे भाईने कभी मेरी बात नहीं मानी। हर बार उसे जो सही लगता लगता था वह वही करता था और अब भी वह वही कर रहा है।" कुछ वक्त रुककर पापा वापिस बोलने लगे।

" मेरा अब तुम्हारे भाई पर बिलकुल भी भरोसा नहीं रहा। तुम ही मेरे लाडले बेटे हो। आज तक मेरी हर बात बिना सवाल किए तुमने मानी है। आज कुछ कह रहा कह रहा हूँ .....मानोगे ?" वह मेरे आँखों से आँखें मिलाकर पूछ रहे थे।

" हाँ।" मैंने हर रोज की तरह जवाब दिया क्योंकी पापा को ना कहने की मैंने कभी हिम्मत ही नहीं की थी और सुबह से पापा की उदासी देखते हुए अब भी मुझ में ना कहने की हिम्मत नहीं थी।

" देखो अभी, मैं तुम्हारा बाप हूँ। मैं हमेशा तुम्हारे भले के बारे में ही सोचूंगा। अभी मैं चाहता हूँ कि तुम उसी लड़की से शादी करोगे जिसे मैं पसंद करूँगा। दूसरे किसी लड़की के बारे में तुम सोचोगे भी नहीं। अगर ऐसा तुमने किया तब ही

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